Search Your Mind

Wednesday, 1 January 2014


Sunday, 3 February 2013

"मैं अपनी साधना से जीवन का एक भी दिन ,शक्ति का एक भी अणु ,
द्रव्य का एक भी पैसा,और हृदय का एक भी पवित्र  भाव छिपाकर नहीं 
रखता ! तभी मैं बनता हूँ एक दृढ़ प्रतिज्ञ वीर व्रती और यही है मेरी 
साधना के स्वरूप की चरम सीमा !"
                                                           -पु . आयुवानसिंह  जी  

Thursday, 31 January 2013

                        !! श्री !!
हमें ,
               साथ बैठकर सोचने ,
               साथ सोचकर बोलने ,
               साथ मिलकर चलने ,
                           की
               कला समझनी होगी !
       
सौजन्य से :- श्री क्षत्रिय युवक संघ 

Wednesday, 19 December 2012

कहाँ से रवाना हुए ,किनको साथ लिया ,किन्हें बीच में छोड़ा और हमारा काफिला किस उम्मीद में कहाँ तक आया इसे इतिहासकार भी नहीं जान पायेगा ! हमें कथायें सुनाने  में रूचि भी नहीं है और इसलिए याद भी नहीं रखते ! याद हम केवल आज को रखते हैं और उसी में भूतकाल को गर्क कर भविष्य के स्वप्न देखा करते हैं !

                                                                                                      पूज्य श्री तनसिंह जी

Friday, 14 December 2012

सुनी सुनाई और रटी -रटाई  बात को पकड़कर कोई आदमी विकाश के सूत्र को समझ तो जरुर सकता है , मगर पा नहीं सकता ! पाने के लिए साहस चाहिए ! साहस का अभिप्राय है बढने के लिए जोखिम उठाने की हिम्मत करना, और सबसे बड़ी जोखिम है - आत्मसुरक्षा के लिए भय रहित  होना !जिस साधक ने ऐसी सुरक्षा प्राप्त कर ली , उसने विकाश के सूत्रों को आत्मसात कर  लिया है ! इसलिए जहाँ सुनी सुनाई और रटी - रटाई बातों  के आधार पर निर्माण का क्षेत्र तैयार किया जाता है , वहाँ  सामान्य साधकों  के निर्माण की संभावनाएँ भले ही हो ,लेकिन उच्च कोटि के साधक का निर्माण उपयुक्त वातावरण और वास्तविक मार्ग दर्शन के बिना संभव नहीं है ! रटी -रटाई  बातों  के बाड़ों में जो लोग विश्राम करते हैं , वे उन परिश्रम से क्लांत प्राणियों की भाँति हैं , जिन्हें विकाश की अपेक्षा अपने जीवन निर्वाह का प्रश्न अधिक सताता है !

                                                                                श्री तनसिंह जी

Friday, 7 December 2012

`

व्यक्ति का व्यक्तित्व उसके कर्मों में परिलल्क्षित होता है ! व्यक्ति मर जाता है परन्तु उसके द्वारा किये गये कार्यों में निहित उद्देश्य एवम भावना के आधार पर भावी पीढ़िया उसका मूल्याँकन करती हैं ! सामान्य व्यक्ति के कार्यों का लेखा प्राय: उसके जीवन के साथ ही समाप्त हो जाता है क्योकि उसके कर्म प्रायः उसके अपने सांसारिक कार्य व्यापार के निमित्त ही अधिक होते हैं परन्तु विशिष्ट व्यक्ति अपने जीवन का हेतु समझते हैं !वे जानते हैं की प्रभु द्वारा प्रदत्त यह दुर्लभ मानव जीवन केवल आहार निंद्रा आदि के लिए नहीं है अपितु ईश्वरीय हेतु की पूर्ति के लिए है !ऐसे व्यक्ति अपने जीवन की सार्थकता सिद्ध करके अमर हो जाते  हैं ! उनका जीवन राष्ट्र की भावी पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत एवम जीवन का सम्बल होता है !
               पूज्य श्री तनसिंह जी ऐसे ही दिव्य पुरुष थे जिन्होंने श्री क्षत्रिय युवक संघ की स्थापना की और संघ के माध्यम से उन्होंने समाज की सुप्त चेतना को जाग्रत किया !समाज को उसके वास्तविक स्वरूप का बोध कराया ! ऐसे दिव्य पुरुष को हमारा सादर नमन !

















Tuesday, 4 December 2012

भावुकता आकर भी जब गंभीरता नहीं लाती , प्रोढता के क्षेत्रों में बचपन की किलकारियाँ चलती हो ,तब यह मान लेना चाहिये  की अप्राकृतिक रूप से सिध्दान्तों को हजम नहीं किया जा सकता !उस समय किसी की चरण धूलि को मस्तक के लगाना सिध्दांत पूजा से कहीं अधिक व्यावहारिक रूप से ज्ञान और गरिमा प्राप्त करने का मार्ग  है !उस समय व्यक्ति और सिध्दांत के भेद से साधक को उलझना हितकर नहीं ! व्यक्ति और सिध्दांत  की तो तुलना ही अवैज्ञानिक है , ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार एक व्यक्ति और उसकी पुस्तक से तुलना करना अवैज्ञानिक है !
                         
                                                                                                   श्री तनसिंह जी

Sunday, 2 December 2012

एक प्रश्न है जिसका उत्तर उलझकर शून्य में भटक गया ! लौटकर जिन्दगी के केवल निशान ही देखने को मिले ! तेरी राहें तू ही जाने और वे तेरे ही भरोसे हैं !
                                                                         श्री तनसिंह जी 

Friday, 30 November 2012

सत्य तो हमारे जीवन में इतना ओत - प्रोत है की जीवन से उसे सर्वथा पृथक किया ही नहीं जा सकता !हमारे साधना कार्यक्रमों में ही इन सम्बन्धों में सत्य तो रहता है ,लेकिन अपने भिन्न -भिन्न स्वरूपों में !कोई भी साधक विकास की चाहे जिस अवस्था में हो ,उसके सामने भी तो सत्य तो है ,लेकिन वह उसे पहचानता नहीं !अत :वह उस अवस्था को छोड़कर अन्य किसी स्थिति की कामना करता है !साधारण कोटि के जीव अपनी निर्बलताओं को ही श्रेष्ठतायें  समझकर उनसे दूर होने का यत्न ही नहीं करते !इसलिए श्रेष्ठ वस्तुओं के सामने से होकर गुजरने पर भी वे अपनी ही निर्बलताओं से चिपके रहने में अधिक सुरक्षा का अनुभव करते हैं !
                                                       
                                                                                  पूज्य श्री तनसिंह जी
सफलता का मापदंड विजय -पराजय  अथवा धन -दौलत नहीं ,बल्कि वे कर्तव्य हैं ,जिनका किसी ने आपत्ति तथा हानि की स्थिति में भी निष्ठापूर्वक पालन किया है !

Monday, 26 November 2012

किसी को अपना बनाने की अपेक्षा  अपना मानने में समय लगता है ! कोई अपना हो जाये ,यह काफी नहीं ,हमे भी उसका बन जाना होता है! कोई बलपूर्वक और यत्नपूर्वक चेष्टा करे की हम उसे अपना मान लें ,वह व्यक्ति सचमुच हमारे आदर के योग्य है क्योंकि उसने परिश्रम पूर्वक यत्न से हमें अपनी ओर कर लिया है !
         

पूज्य श्री तनसिंह जी की डायरी से

Sunday, 25 November 2012

मुझे असफलताएँ भी मिली हैं ,लेकिन मेरी सफलताओं के मुकाबले में वे कुछ भी नही हैं !कुछ असफलताओं का होना स्वाभाविक है ,तब चिंता क्यों करूं ?सत्य तो यह है की कुछ असफलताएं परमावश्यक भी हैं,सही स्थिति का मुल्यांकन करना हमे नहीं आता और इसलिए हम अपने दुर्भाग्य की छोटों पर चीखते-चिल्लाते हैं और सौभाग्य की सर्वथा उपेक्षा करते हैं !
                                       
पूज्य श्री तनसिंह जी की डायरी से  +

Saturday, 24 November 2012


दीपक लिए राह पर बैठा ,जाने कितने समय से मुसाफिर !तेरी प्रतीक्षा करता रहा हूँ !पहले तुम्हारी याद  आई ,फिर तुम्हारी छाया आई  और छाया के बाद तुम आए !पर जानते हो ,तुम्हारे आने के बाद भी एक चीज रह गई ,यदि तुम्हारी रूह नहीं आई,तुम्हारी आत्मा नहीं आई और तुम्हारी समस्त सच्चाई नहीं आई,तो समझ लो कुछ नहीं आया !


                                                             पूज्य श्री तनसिंह जी की डायरी से