वो दया का भाव, या कि शौर्य का चुनाव,
या कि हार का वो घाव तुम ये सोच लो
या कि पूरे भाल पे जला रहे विजय का लाल,
लाल यह गुलाल तुम ये सोच लो
रंग केसरी हो या मृदंग केसरी हो या
कि केसरी हो ताल तुम यह सोच लो
जिस कवि की कल्पना में ज़िन्दगी हो प्रेम गीत,
उस कवि को आज तुम नकार दो
भीगती मसों में आज, फूलती रगों में आज,
जय संघ शक्ति !
या कि हार का वो घाव तुम ये सोच लो
या कि पूरे भाल पे जला रहे विजय का लाल,
लाल यह गुलाल तुम ये सोच लो
रंग केसरी हो या मृदंग केसरी हो या
कि केसरी हो ताल तुम यह सोच लो
जिस कवि की कल्पना में ज़िन्दगी हो प्रेम गीत,
उस कवि को आज तुम नकार दो
भीगती मसों में आज, फूलती रगों में आज,
आग की लपट का तुम बघार दो
आरम्भ है प्रचण्ड…
आरम्भ है प्रचण्ड, बोले मस्तकों के झुंड, आज ज़ंग की घड़ी की तुम गुहार दो
आन बान शान या कि जान का हो दान आज इक धनुष के बाण पे उतार दो
आरम्भ है प्रचण्ड…
आरम्भ है प्रचण्ड…
आरम्भ है प्रचण्ड, बोले मस्तकों के झुंड, आज ज़ंग की घड़ी की तुम गुहार दो
आन बान शान या कि जान का हो दान आज इक धनुष के बाण पे उतार दो
आरम्भ है प्रचण्ड…
जय राजपुताना !
जय माता जी !
जय माता जी !
जय संघ शक्ति !