हर आगन्तुक को मै बड़ी शीघ्रता से पहचान लेता हूँ ,की वह कितने पानी में है ,क्योकि मैं अपने आपको बहुत अच्छी तरह से जानता हूँ ,कि मैं खुद कितने पानी में हूँ ? जिन बाटों से मैं अपने आपको तोलता हूँ ,ठीक उन्ही से दुसरो को भी तोलता हूँ और मेरे अनुमान आष्चर्यजनक रीती से सही निकलते है !अपने आप को ठीक प्रकार जाने बिना अन्य लोगों को ठीक -ठीक जानना असंभव है !
पूज्य श्री तनसिंह जी की डायरी से