Search Your Mind

Tuesday, 4 December 2012

भावुकता आकर भी जब गंभीरता नहीं लाती , प्रोढता के क्षेत्रों में बचपन की किलकारियाँ चलती हो ,तब यह मान लेना चाहिये  की अप्राकृतिक रूप से सिध्दान्तों को हजम नहीं किया जा सकता !उस समय किसी की चरण धूलि को मस्तक के लगाना सिध्दांत पूजा से कहीं अधिक व्यावहारिक रूप से ज्ञान और गरिमा प्राप्त करने का मार्ग  है !उस समय व्यक्ति और सिध्दांत के भेद से साधक को उलझना हितकर नहीं ! व्यक्ति और सिध्दांत  की तो तुलना ही अवैज्ञानिक है , ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार एक व्यक्ति और उसकी पुस्तक से तुलना करना अवैज्ञानिक है !
                         
                                                                                                   श्री तनसिंह जी